मारवाड़ का राठौड़ वंश एवम् इस वंश के प्रतापी शासक 

मारवाड़ का राठौड़ वंश एवम् इस वंश के प्रतापी शासक 

जिस प्रकार दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान के गुहिलों का शासन मेवाड़ और वागड़ प्रांत में स्थापित हुआ, उसी प्रकार राजस्थान के उत्तरी तथा पश्चिमी भागों में राठौड़ों के राज्य भी स्थापित हुए।

राठौड़ की उत्पत्ति का विषय विवादास्पद है। विभिन्न ताम्रपत्रों, शिलालेखों और प्राचीन पुस्तकों में राठौड़ वंश की उत्पत्ति को लेकर भिन्न-भिन्न मत प्रतिपादित किये गये हैं। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि राठौड़ हिरण्यकश्यप की सन्तान हैं। जोधपुर राज्य की ख्यात में इन्हें राजा विश्वतमान के पुत्र राजा वृहद्बल से पैदा होना लिखा है। दयालदास ने इन्हें सूर्यवंशीय माना है और इन्हें ब्राह्मण भल्लराव की सन्तान बताया है। नैणसी ने मारवाड़ के राठौड़ो को कन्नौज से आने वाली शाखा बताया है। कर्नल टॉड ने राठौड़ों की वंशावलियों के आधार पर इन्हें सूर्यवंशी माना है।

इस प्रकार राठौड़ों की उत्पत्ति सम्बन्धी मत पर एक राय नहीं है, किंतु सभी विद्वान इन्हें दक्षिण भारत राष्ट्रकूटों से अवश्य संबंधित मानते हैं। इनमें जोधपुर और बीकानेर के राठौड़ अधिक प्रसिद्ध है। जोधपुर के राठौड़ का मूलपुरुष सीहा था, जिसे कन्नौज के गढ़वाल जयचंद का वंशज माना जाता है। सिहा केवल मारवाड़ के एक छोटे से भाग पाली के उत्तर पश्चिम में अपना राज्य स्थापित कर पाया। सिहा ने मारवाड़ में राठौड़ राज्य की स्थापना तो कर दी, मगर उसे व्यवस्थित नही कर पाया।

राव चुंडा (1394-1423) –

अपने साहस और कूटनीति से राव चुंडा ने मंडोर पर अधिकार कर लिया। इसने मंडोर को राठोडो की राजधानी बनाया। मंडोर पर अधिकार के बाद इसने आस – पास के क्षेत्रों खाटू, डीडवाना, सांभर, अजमेर, नाडोल आदि पर भी अधिकार कर लिया। पुंगल के भाटियो द्वारा वह धोखे से 1423 में मारा गया। उसकी पत्नी चांद कंवर ने चांद बावड़ी का निर्माण करवाया था।

राव रणमल (1427-1438 ई.)

रणमल अपने छोटे भाई कान्हा को मारवाड का शासक बनाये जाने से नाराज होकर मेवाड़ चला गया। इसने अपनी बहन हंसा बाई का विवाह राणा लाखा से कर दिया। यह विवाह रणमल ने इसी शर्त पर किया था, कि हंसा बाई का पुत्र ही लाखा का उत्तराधिकारी होगा। अपन भान्जे मोकल के मेवाड़ महाराणा बनने पर मेवाड़ प्रशासन में रणमल का प्रभाव बढ़ गया। रणमल की 1438 में उसकी प्रेमिका भारमली के सहयोग से मेवाड़ी सामंतो द्वारा हत्या कर दी गई।

राव जोधा (1438-1489 ई.)-

राव जोधा मारवाड़ के राव रणमल का पुत्र था। 1438 ई. में चित्तौड़ में रणमल की हत्या होने के बाद उसने जंगलों में रहकर अपनी शक्ति को संगठित किया। 1453 ई. में वह व मण्डोर जीतने में सफल रहा। उसने मेवाड़ से सुलह करने के लिए अपनी पुत्री का विवाह मेवाड़ी राजकुमार रायमल से कर दिया। उसने 1459 ई. में जोधपुर नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। राव जोधा ने नयी राजधानी को सुरक्षित रखने के लिए चिडियायूँक पहाड़ी पर एक दुर्ग बनाया जिसे मेहरानगढ़ कहते हैं। राव जोधा ने दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी की एक सेना को परास्त करके प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा राव जोधा को जोधपुर का प्रथम प्रतापी शासक मानते हैं।

राव मालदेव (1531-1562 ई.)–

राव मालदेव ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से भाग लिया। ज यद्यपि खानवा के युद्ध के समय मारवाड़ का शासक इसका पिता राव गांगा थी। इसने 1532 ई. में बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण के दौरान राणा विक्रमादित्य की सहायता की। 1536 ई. में राव मालदेव ने जैसलमेर के राव लूणकरण की पुत्री उमादे से विवाह किया, जो इतिहास में रूठी रानी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस घटना का कारण यह था, कि मालदेव का श्वसुर व उमादे का पिता राव लूणकरण मालदेव की हत्या करवाना चाहता था। इसकी सूचना मालदेव की सास ने मालदेव को भिजवा दी. इस घटना के बाद मालदेव व उमादे के संबंध बिगड़ गये। वह रूठकर अजमेर के तारागढ़ में रही व इतिहास में ‘रूठी रानी’ नाम से प्रसिद्ध हुई। मालदेव ने मेड़ता के वीरमदेव और बीकानेर के राव जैतसी पर आक्रमण कर (1542 ई.) उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया। वीरमदेव व राव जैतसी शेरशाह की शरण में चले गये। 1539 व 1540 ई. में शेरशाह के हाथों पराजित होकर हूमायूँ दर-बदर भटक रहा था, तो मालदेव ने हुमायूँ को सहायता का संदेश भेजा, क्योंकि मालदेव जानता था, कि हुमायूँ की पूर्ण पराजय के पश्चात् शेरशाह का अगला शिकार स्वयं मालदेव ही होगा।

1543–44 ई. में मालदेव को शेरशाह सूरी के आक्रमण का सामना करना पड़ा। शेरशाह की धूर्तता ने

मालदेव और उसके सेनापतियों के बीच अविश्वास उत्पन्न कर दिया जिससे मालदेव ने मैदान छोड़ दिया।

मगर उसके सेनापतियों जैता और कुप्पा ने जनवरी, 1544 में गिरि सुमेल में शेरशाह से युद्ध किया और

वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी वीरता से प्रभावित होकर शेरशाह को कहना पड़ा “एक मुट्ठी बाजरे के

लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।”शेरशाह की मृत्यु (1545 ई.) के बाद मालदेव ने जोधपुर, पोकरण, फलौदी, बाड़मेर, कोटड़ा, जालौर * और मेड़ता पर पुनः अधिकार कर लिया। 1562 ई. में मालदेव की मृत्यु हो गई।

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