राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंशों का परिचय

राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंशों का परिचय

गुहिल वंश एवं इस वंश के प्रतापी शासक

उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ तथा इनके आस-पास का क्षेत्र मेवाड़ कहलाता था। गुहिल वंश ने मुख्यतः मेवाड़ में शासन किया। इस वंश का नामकरण इस वंश के प्रतापी शासक ‘गुहिल’ के नाम से हुआ। गुहिल वंश की उत्पत्ति और मूल स्थान के बारे में अनेक मत प्रचलित हैं। अबुल फजल इन्हें ईरान के शासक नौशेखाँ से संबंधित करता है, तो कर्नल टॉड इन्हें वल्लभी के शासकों से संबंधित मानता है, वहीं नैणसी व गोपीनाथ शर्मा इनके ब्राह्मण होने का मत प्रतिपादित करते हैं। डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का मानना है कि 566 ई. के लगभग गुहिल ने अपना शासन स्थापित किया। गुहिल के बाद मेवाड़ का प्रतापी शासक बप्पा हुआ ।

बप्पा रावल (734–753 ई.) ‘

राज प्रशस्ति’ के अनुसार बप्पा ने 734 ई. में चित्तौड़ के शासक मानमोरी को परास्त कर चित्तौड़ पर अधिकार किया। बप्पा की राजधानी ‘नागदा’ थी। बप्पा ने कैलाशपुरी में एकलिंगजी (लकुलीश मंदिर का निर्माण करवाया। एकलिंगजी गुहिल वंश के कुलदेवता थे। गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार, बप्पा का वास्तविक नाम कालभोज था। बप्पा कालभोज की उपाधि थी। वीर विनोद के रचनाकार कविराज श्यामलदास ने लिखा है कि बप्पा किसी राजा का नाम नहीं अपितु खिताब था। ऐसी मान्यता है कि बप्पा चित्तौड़ के शासक मानमोरी के यहाँ सेवा में था। जब चित्तौड़ पर विदेशी सेना का हमला हुआ, तो उनसे मुकाबले की चुनौती बप्पा ने स्वीकार की और उन्हें सिंध तक खदेड़ दिया। इसीलिए इतिहासकार सी.वी. वैद्य उसकी तुलना चार्ल्स मार्टेल (फ्रांसिसी सेनापति, जिसने यूरोप में सर्वप्रथम मुसलमानों को परास्त किया था।) से करते हैं।

Gत्रसिंह (1213-1253 ई.)

– गुहिल के ही एक वंशज जैत्रसिंह ने परमारों से चित्तौड़ छीनकर उसे अपनी राजधानी बनाया व 1227 ई. में ‘भूताला के युद्ध’ में दिल्ली के गुलाम वंश के सुल्तान इल्तुतमिश की सेना को परास्त किया, जिसका वर्णन जयसिंह सूरी के ग्रंथ हम्मीर मदमर्दन में मिलता है। इस ग्रंथ में इल्तुतमिश को हम्मीर कहा गया है। डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने जैत्रसिंह की प्रशंसा करते हुए लिखा है- “दिल्ली के गुलाम वंश के सुल्तानों के समय में मेवाड़ के राजाओं में सबसे प्रतापी और बलवान

राजा जैत्रसिंह ही हुआ, जिसकी वीरता की प्रशंसा उसके विरोधियों ने भी की है।”

रतनसिंह ( 1302-1303 ई.)-

रावल रतनसिंह को 1303 ई. में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का सामना करना पड़ा, जिसका कारण अलाउद्दीन की साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा व चित्तौड़ की सैनिक एवं व्यापारिक उपयोगिता थी। 1540 ई. में मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखित पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ आक्रमण का कारण रावल रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना बतलाया गया है। डॉ. दशरथ शर्मा इस मत को मान्यता प्रदान करते हैं। अलाउद्दीन की सेना से लड़ते हुए रतनसिंह व उसके सेनापति गोरा और बादल वीरगति को प्राप्त हुए तथा रानी पद्मिनी ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर कर लिया। इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी का समकालीन इतिहासकार अमीर खुसरो भी सम्मिलित हुआ था, उसने अपने ग्रंथ खजाईन – उल – फुतुह में इस आक्रमण का वर्णन किया है। अलाउद्दीन ने अपने पुत्र खिजखाँ को चित्तौड़ का प्रशासक नियुक्त कर चित्तौड़ का नाम खिजाबाद कर दिया। रतनसिंह मेवाड़ के गुहिल वंश की रावल शाखा का अंतिम शासक था।

राणा हम्मीर (1326-1364 ई. –

सिसोदा ठिकाने के जागीरदार हम्मीर ने 1326 ई. में चित्तौड़ पर अधिकार कर गुहिल वंश की पुनःस्थापना की। सिसोदा का जागीरदार होने से उसे सिसोदिया कहा गया। हम्मीर के दादा लक्ष्मणसिंह अपने पुत्रों के साथ अलाउद्दीन खिलजी के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। उसके बाद मेवाड़ के सभी शासक सिसोदिया कहलाते हैं। हम्मीर को ‘मेवाड़ के उद्धारक’ की संज्ञा दी जाती है। राणा हम्मीर को विषमघाटी पंचानन (विकट आक्रमणों में सिंह के सदृश्य) की संज्ञा राणा कुंभा की कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में दी गई है। हम्मीर ने सिंगोली (बाँसवाड़ा) के युद्ध में मुहम्मद बिन तुगलक की सेना को परास्त किया था।

महाराणा लाखा (1382-1421 ई.-

1382 ई. में महाराणा लाखा मेवाड़ का शासक बना। मारवाड़ के रणमल की बहन हंसाबाई का विवाह लाखा के पुत्र चूण्डा के साथ होना था, मगर परिस्थितिवश यह विवाह लाखा के साथ संपन्न हो गया। इस विवाह के साथ यह शर्त थी, कि मेवाड़ का उत्तराधिकारी हंसाबाई कापुत्र ही होगा, जिससे लाखा के योग्य पुत्र चूण्डा को राज्याधिकार से वंचित होना पड़ा। चूण्डा को राजस्थान का ‘भीष्म पितामह भी कहा जाता है। राणा लाखा के समय में जावर माइन्स से चांदी व सीसा बहुत अधिक मात्रा में निकलने लगा, जिससे आर्थिक समृद्धि बढ़ी। इसी समय एक बनजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया था।

महाराणा मोकल (1421 – 1433) –

मोकल महाराणा लाखा व हंसाबाई का पुत्र था । 1421 में जब मोकल शासक बना तो, अल्पायु का होने के कारण चुंडा ने उसके संरक्षक के रूप में कार्य किया । पर जब चुंडा को लगा की मोकल की माता हंसाबाइ उस पर संदेह करती है, तो वह मेवाड़ छोड़कर मांडू चला गया। 1433 में मोकल की जिलवाड़ा में चाचा व मेरा ने मेहपा पंवार के साथ मिलकर हत्या कर दी।

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